
स्त्रियों के बदले हुए और बदलते परिधान ….
अपने मूल उद्धेश्य को कब पूरी करेंगी स्त्रियां….
खुद की बाट लगाने को क्यों आमदा हैं स्त्रियां ?
स्त्रियों को संक्रमणकाल से उबरने की है जरूरत…….
SPECIAL REPORT PUJA PRASAR…
एक समय था जब स्त्रियों को अपना तन ढ़कने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी थी ।हम केरल के त्रावणकोर के उस दर्दनाक प्रथा की बात कर रहे हैं जहां स्त्रियों को अपने ऊपरी अंगों को ढ़कने का अधिकार नहीं था ।यह जानकर आपको हैरानी जरूर हो रही होगी की केरल जैसे इतने प्रगतिशील राज्य की कभी ऐसी तस्वीर भी थी ।
त्रावणकोर इलाके की महिलाओं के लिए 26 जुलाई का दिन बेहद महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है । क्योंकि इसी दिन 1859 में वहां के महाराजा ने स्त्रियों को शरीर के ऊपरी भाग पर कपड़े पहनने की इजाजत दी थी । वह दर्द आज भी केरल की महिलाओं के जेहन और वहाँ की संस्कृति में दफन है ।पुरुषों को अपनी उस मानसिक अवस्था को समझने की जरूरत है,जब वहां की औरतों को स्तन टैक्स चुकाना पड़ता था ।यही नहीं यदि स्त्रियां अपने तन के ऊपरी भाग को ढ़क कर चलती थीं,तो,उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाती थी या फिर कहीं भी बीच सड़कों पर उनके वस्त्र फाड़ दिए जाते थे ।वैसे इस कड़ी में हमें इस बात का जिक्र करना भी आवश्यक है की विभिन्य प्रदेशों में आदिवासी समाज और निम्न तबकों के बीच आज के वर्तमान और आधुनिक युग में भी स्त्रियों को ऊपरी वस्त्र पहनने से,एक तरह से सामाजिक मनाही है ।वैसे हालिया वर्षों में,इस समाज में भी परिवर्तन आया है और यहां भी स्त्रियां अब ऊपरी परिधान पहन रही हैं ।
हमें यह कहने में कतई कोई संकोचनहीं है की आधुनिक भारतीय नारी को भारी–भड़कम वस्त्र से चिढ़ और ऊब हो गयी है । ऐसी स्त्रियां पूरी नारी जात को कलंकित कर रही हैं ।चाहे किसी भी परिस्थिति में लेकिन आज हमारा समाज भी इसे स्वीकार चुका है ।टीवी और फ़िल्म से लेकर मोबाइल सहित कम्प्यूटर के पर्दे पर जो दिख रहे हैं,स्त्रियां उसे अपने निजी जीवन में उतार रही हैं ।उन्हे यह नहीं मालूम की पर्दे पर हर काम मनोरंजन के लिए हो रहा है और निजी जीवन किसी के मनोरंजन के लिए नहीं अपितु अपने जीवन के उद्धेश्यों को पूरा करने के लिए है ।आज स्त्रियों को आत्म मन्थन,आत्म अवलोकन और आत्म विवेचन की जरूरत है ।विश्व भर में भारतीय नारी की एक विशिष्ट पहचान रही है ।स्त्रियों को उस ख़ास पहचान के लिए एक बार फिर से संघर्ष करने की जरूरत है ।