पूजा या धोखा

आज सर्वत्र सरस्वती पूजा की धूम मची हुई है लेकिन क्या यह धार्मिक निष्ठा से है अथवा मानसिक विकीर्णता से ? यह प्रश्न गूढ़ है । प्रश्न ये कि समाज किस ओर जा रहा है ?
शारदाकान्त झा, जिला मंत्री विहिप, सहरसा::: प्रश्न ये कि पूजन के नाम धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है ? सभी पूजा पंडालों में सुविधा जैसी भी हो पर #डीजे उन्नत किस्म का अवश्य उपलब्ध है। आयोजकों में अधिकांश वे संस्कारी युवा वर्ग हैं जिनसे समाज ही नहीं अपितु स्वजन भी बचकर निकलना चाहते हैं।
पूजा के प्रारंभ से लेकर प्रतिमा विसर्जन तक अश्लीलता से भरे गानों को उच्च ध्वनि से बजाया जाता है। जिसे सभ्य समाज के लोग सार्वजनिक रूप से सुन नहीं सकते हैं । सभी प्रकार के प्रतिबंधित मादक पदार्थों का सेवन किये हुये युवक/युवतियां जिस प्रकार अश्लीलता पूर्ण प्रदर्शन करते हैं, उसे देख कर तो माँ हंसवाहिनी भी हतप्रभ रह जाती होंगी। इस प्रकार के पूजनोत्सव से धर्म की सबसे बड़ी हानि होती है। त्योहार का उद्देश्य समामेलन होता है नाकि विकृति ।
प्रतिमा विसर्जन के समय जिन आंखों को नम रहना चाहिये उन्हीं आंखों में उन्माद भरे हुए होते हैं । तेज, धारदार एवं जानलेवा हथियारों के साथ होने वाला प्रदर्शन इस बात की पुनः पुष्टि करता है कि यह अनुष्ठान धार्मिक तो कतई नहीं है। इन क्रियाकलापों को देख कर ही अग्रलिखित प्रश्न उत्पन्न होते हैं। मैं विद्या की देवी जगत जननी माँ शारदे से यही वंदना करता हूँ कि अपने इन संतानों को सदबुद्धि दें ताकि सदकर्म के प्रति वे भी अग्रसर हों ।