इमरजेंसी मरीजों के लिए पल-पल होता है कीमती……
सुदीप सुमन की रिपोर्ट —- सहरसा। कोसी प्रमंडल का सबसे बड़ा अस्पताल बिगत चार माह से बाहरी दुनियां से बेखबर है या फिर यह कहें कि वह खुल कर सांस नहीं ले पा रहा है। अस्पताल प्रबंधन ने यहां लक्ष्मण रेखा खिंच दिया है। गौरतलब है कि मिनी पी.एम.सी.एच्. कहलाने वाला सहरसा सदर अस्पताल का मुख्य द्वार पिछले चार माह से तानाशाही फरमान से बंद है। जिसका खामियाजा इमरजेंसी के दौरान ईलाज को आये मरीजों को ज्यादा उठाना पड़ता है। वहीं रोजमर्रा के ईलाज को पहुँचने वाले मरीज तानाशाही फरमान से हर रोज परेशान रहते है। सदर अस्पताल प्रबंधन नियम व कानून को ताख पर रख निरंकुश शासन चला रहा हैं।
जुल्म की इंतहा देखिये गेट बंद करने के लिए न कोई विभागीय आदेश है और न ही जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक में गेट बंद को लेकर कोई प्रस्ताव। चार माह पूर्व सिर्फ इतना कह कर गेट बंद कर दिया गया कि अस्पताल के भीतर सौंदर्यीकरण व रंगरोगन का कार्य किया जायेगा। इसलिए अल्पावधि के लिए उसे बंद किया जा रहा है। अलबत्ता गेट बंद करने का जो भी कारण हो तानाशाही आदेश से मरीज परेशान और हलकान है। इमरजेंसी मरीजों के परिजनों की गेट बंद रहने से हलक सुखी रहती है कहीं कुछ पल की देरी से अनहोनी न हो जाये। क्योकिं मुख्य दरवाजा बंद रहने से आपातकाल के मरीजों को सौ मीटर का अतिरिक्त फासला तय कर गेट संख्या ०2 से जाना पड़ता है। इस बात से शायद ही कोई अनजान होगा कि इमरजेंसी ईलाज कराने आये मरीजो के लिए पल-पल बहुमूल्य होता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि सदर अस्पताल प्रबंधन को इस बात से कोई लेना देना नहीं है।
जाहिरतौर से अस्पताल प्रशासन के लिए यह कोई बड़ा मामला नहीं है परन्तु कभी कभी डॉक्टर साहब ही कहते है मात्र कुछ मिनट आते तो शायद यह बच जाता. जड़ा आप भी सोचीय इस गेट को बंद कर क्या अस्पताल प्रशासन सही कार्य कर रही है. हालाकिं कई मरीजों के परिजन, स्थानीय लोग और सामाजिक संगठनों ने स्थानीय जनप्रतिनिधि व स्वास्थ्य विभाग से सदर अस्पताल प्रबंधन की मनमानी व निरंकुश रवैये की शिकायत की है। लेकिन किसी की न चली।