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अपराध नियंत्रण के लिए समाज को जिम्मेदार होना ही होगा-प्रत्युष प्रशांत
SAHARSA TIMES ( आभार –womenwomenia . blogspot . in)
सभ्यता के शुरूआत के बाद सामुदायिक जीवन में इंसानी विश्वास ने मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाया। सामुदायिक जीवन के विश्वास ने व्यक्तियों की खामियों को दूर करने की सामाजिक कोशिशे भी शुरू की। पारंपरिक और आधुनिक दोनों ही जीवन शैलियों में तमाम सामाजिक कोशिशों ने इंसानी खामियों पर लगाम नहीं लगा सकी। इसलिए समाज में प्रेम, बंधुत्व, भाई-चारा के साथ अपराध सभ्य और असभ्य समाज की खूबियां–खामियां बनी रही और समाज को “रामराज” जैसे बनाने की परिकल्पना भी बनती सवरती रही।
कुछ दिनों पूर्व राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने देश में अपराध के आकड़े जारी हुए। जिसमें अपराधों में वृद्धि विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि तमाम राज्य सरकारों की महिला सुरक्षा के विषय पर गंभीरता की कलई भी खोलती है और यह बताता है कि तमाम की कोशिशे नाकाफी रही है। ताजा आंकड़ों में महिला सुरक्षा के लिए राज्य सरकारों की मोबाईल एप्प और एंटी रोमियो स्क्वांयड को धत्ता बता रही है।
जाहिर है कि पुलिस तंत्र की कार्यशैली में सकारात्मक और प्रभावी बदलाव की अधिक जरूरत है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है किसी भी समाज में इंसानी खामियों को सख्त कानून के सहारे नियंत्रण नहीं किया जा सकता है, इसके लिए जन चेतना और सामाजिक चेतना का विकास भी जरूरी है। जिसे देश की तमाम राज्य सरकारों ने कभी भी प्राथमिकता में नहीं रखा। कोई भी समाज किसी भी अपराध के खात्मे के लिए पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी को प्राथमिक मानती है और समाज के प्रति व्यक्ति की अपनी स्वयं की जिम्मेदारी से मुक्त रहना चाहती हैं। जबकि किसी भी सामाजिक समस्या का समाधान सामाजिक संस्था और सामाजिक सहभागिता के अभाव में संभव नहीं है। विश्व के जो देशों ने अपराध नियंत्रण के अव्वल पायदान पर है मसलन, सिंगापुर, आइसलैंड, नार्वे, जापान, हांग-कांग इन देशों ने कठोर कानूनों के साथ-साथ समाज की सहभागिता और जिम्मेदारी पर भी काम किया है।
मौजूदा स्थिति दुनिया के सबसे बड़े पुलिस बल वाले देश भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा पुलिस बल वाला देश है यहां तकरीबन 30 लाख पुलिसकर्मी हैं। जाहिर है कि कानून व्यवस्था को सामान्य रखने में नाकामी इच्छाशक्ति और पुख्ता रणनीति के कारण भी है जिससे निपटने के लिए व्यापक कार्य योजना पर अमल करने की जरूरत है। साथ ही साथ सामाजिक यथास्थिति से निपटने के लिए मानवीय मूल्यों के प्रति समाज को जागरूक करना जरूरी अधिक है क्योंकि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में अपराध के मनोवृत्ति में काफी फर्क है।
शहरी क्षेत्रों में अपराध की मनोवृत्ति में जीवन में आगे बढ़ने की ललक और स्वयं के अंदर का बेहतर होने का भाव है तो ग्रामीण अपराध की मनोवृत्ति लैंगिक एंव जाति के आधार पर अधिक है। लैंगिक एंव जाति के आधार पर अपराध का कारण परंपरावादी समाज में बंधुत्व भाव का नितांत अभाव है जिसका समाधान के लिए कानून पर निर्भर नहीं रखा जा सकता है। आधुनिक होते हुए भारतीय समाज में आज भी जाति या मजहब जानने के बाद घरों में चाय की प्यालियां तक बदल जाती है, सामाजिक व्यवहार में बदलाव का अंदाजा यहां से लिया जा सकता है। इसके समाधान के लिए राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सास्कृतिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव करना जरूरी है। जाहिर है शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में अपराध के ग्राफ में बढ़ोतरी का एक कारण सामाजिक परिस्थितियों में प्रत्यक्ष एंव परोक्ष सामाजिक नियंत्रण का अभाव का होना है।
हाल के दिनों में भारतीय सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन में एक नहीं सैकड़ों इस तरह के उदाहरण उपलब्ध दिख जायेगे, जहां महिलाओं के अस्मिता का सवाल को चुनौतियां मिली है। उदाहरण के तौर पर साईबर स्पेस पर युवा लड़कियों के मुखर अभिव्यक्तियों पर कुंठित या खास मानसिकता वाले कमेंट या ट्रोल करने वालों की भाषा से समझा जा सकता है। हाल के दिनों में इस मनोवृत्ति का विस्तार समान्य सामाजिक जीवन में भी हुआ है। दुर्भाग्य और लज्जाजनक स्थिति यह है कि अन्य लोग या समाज-समुदाय इन चीजों पर फुसफुसा कर रह जाते है। इन स्थितियों से यह सिद्ध होता है कि सामाजिक व्यवहारों में हम लोकतांत्रिक चेतना के विकास में हम चूक गये है।
कहीं न कहीं सामाजिक-सास्कृतिक सामाजीकरण में स्त्री-पुरुष समानता के मूल पाठ को समझाने में समाज असफल रहा है, जो महिलाओं के साथ समानता का भाव पैदा नहीं होने देता है। जिसके कारण समाज और सामाजिक सस्थाओं में भी लैंगिक समानता को लेकर श्रेष्ठता का भाव रहता है, जो सामाजिक व्यवहार में महिलाओं के विरुद्ध अपराध को पैदा करता है।
देश में अपराध के आकड़े में सुधार के लिए जरूरी है अपराध नियंत्रण के लिए कठोर कानून के साथ पुलिस प्रशासन और समाजिक सहभागिता के जिम्मेदारी के लिए जागरूक किया जाए। समाज और प्रशासन के बीच प्रभावी भागीदारी के अभाव में अपराध नियंत्रण एक दुरुह चुनौति के तरह है, इसके साथ-साथ लोकतांत्रिक तरीकों से सामाजिक और आर्थिक विषमता को कम किए बिना अपराध नियंत्रण असंभव है।