बिहार में राजनीतिक भूचाल…….
जनता हित से परे राजनीति का आखिर कब होगा खात्मा ?
महागठबंधन नीतीश के राजनीतिक जीवन की सब से बड़ी भूल
राजद और कांग्रेस से नही,बल्कि नीतीश लालू के परिवारवाद और लालू के पुरजोर हस्तक्षेप से थे परेशान
बिहार की राजनीति पर मुकेश कुमार सिंह का खुला विश्लेषण—-
बात हम वहां से शुरू कर रहे हैं जहां से नीतीश एनडीए के साथ मिलकर वर्ष 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज हुए ।हम उनके पांच साल के कार्यकाल को अपने होश में आने के बाद का बिहार का स्वर्णिम काल मानते है ।पांच साल के बेनजीर काम के दम पर नीतीश को जनता ने दुबारा बिहार की सत्ता सौंपी । लेकिन 2010 से चलने वाले पांच वर्ष के काल नौकरशाही और भ्रष्टाचार के नाम रहे । शासन नाम की कोई चीज नहीं रही और कानून–व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई ।ना स्कूल ठीक रहे ना स्वास्थ्य इंतजाम जनता के लिए मुफीद रहे । राजनीति का संक्रमण काल जैसा माहौल बन गया । ऐसे में 17 सालों की नीतीश की एनडीए से मजबूत दोस्ती टुकड़े–टुकड़े होकर बिखड़ गयी ।फिर लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें नीतीश हासिये पर आ लुढ़के ।फिर कई खेल हुए और आखिरकार नीतीश ने अपने घोर विरोधी लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के हाथ थामे और महागठबंधन की सरकार बिहार में बनी ।
इस कड़ी में हम अपने पाठकों को नीतीश की कुछ बेहद बड़ी राजनीतिक गलती की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराना चाहेंगे ।नीतीश ने सबसे पहले वर्ष 2008 में पहली बड़ी गलती की जब गुजरात सरकार के द्वारा कुसहा त्रासदी के सताए लोगों के लिए मिली राहत की ट्रेन और पांच करोड़ की राशि को उन्होंने लौटा दिया ।दूसरी गलती बीजेपी को भोज का न्योता देकर,भोज में शामिल नहीं किया । तीसरी गलती लोकसभा में हार की जिम्मेवारी खुद लेते हुए इस्तीफा दिया और जीतन राम मांझी को सीएम बनवाया ।चौथी गलती जीतन राम मांझी को सत्ता से बेदखल कर खुद फिर से सीएम बन गए ।यह समय वह था जब नीतीश की राष्टीय छवि बनी हुई थी । कुछ बाहर के देशों में भी नीतीश की तारीफ होने लगी थी ।यहीं पर नीतीश ने अतिमहत्वाकांक्षा में सबसे बड़ी गलती की । नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और फिर से सत्ता के वापसी कर सीएम बन बैठे । इन्हें उस वक्त यह खुशफहमी हो गयी थी कि वे पीएम मेटेरियल हैं ।लेकिन जब महागठबंधन की सरकार बनी तो,लालू प्रसाद छड़ी लेकर नीतीश के पीछे घूमने लगे । लालू ने अनंत सिंह को जेल भिजवाया तो नीतीश ने शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसवाया । बिहार में राजनीति की जगह चूहे–बिल्ली का खेल चलने लगा ।
महागठबंधन में तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम और तेजप्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया ।यह दो महत्वपूर्ण पद लालू के दबाब में बांटे गए । देश सहित विदेश में इसको लेकर नीतीश की किरकिरी हो रही थी । इसी बीच लालू ने अपनी सुपुत्री मीसा भारती को राज्यसभा भेजने में कामयाब हुए। नीतीश लालू के परिवारवाद और उनके अतिशय दबाब से ऊब चुके थे । इस दौरान लालू की संतानों की अवैद्य संपत्ति का ब्यौरा उन्हें मिलने लगा । केंद्र ने सीबीआई और आईबी को लालू परिवार के पीछे लगा दिया । इसमें कोई शक नहीं है कि नीतीश के इस तमाम प्रकरण में मौन स्वीकृति थी ।सीबीआई और आईबी की शुरुआती जांच में ही लालू परिवार के अरबों–खरबों संपत्ति का खुलासा और जब्ती हुई ।
लालू समाजवाद और गरीबों का मसीहा बनकर जनता का खून चूसकर धन इकट्ठे कर रहे थे । खुद को सेक्युलर,तो कभी गरीबों की आवाज बताकर लालू ने जनता की आंखों में धूल नहीं झोंके बल्कि जनता की आंखों को मिट्टी पर रगड़ते और मसलते रहे । धर्म और जाति लालू प्रसाद का सबसे बड़ा हथियार रहा है ।लेकिन पूरी तरह से असहज हुए नीतीश की आखिरकार आंखें पूरी तरह से खुलीं और उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़कर इस्तीफा दे दिया ।अब बिहार को फिर से एनडीए की नई सरकार मिल गयी है ।यहां भी हम नीतीश कुमार को खबरदार कर रहे हैं कि जातिवर्ग,पंथ, सम्प्रदाय और धर्म से ऊपर उठकर मंत्री पद का वितरण करें । मंत्री पद को रेवड़ी ना समझें और मान सिंह,जयचंद और मीरजाफर की औलाद से सतर्क रहें ।
हमारे सुधि पाठकों,अगर नीतीश कुमार आजतक एनडीए के साथ होते तो,राजद नाम की पार्टी का पूरी तरह से बिहार में खात्मा हो चुका होता और कांग्रेस पूर्व की तरह बिहार में अपनी जमीन तलाशती नजर आ रही होती ।लेकिन नीतीश के राजनीतिक जीवन के सब से गलत और घृणित फैसले “महागठबंधन” के निर्माण से राजद नाम की पार्टी को ना केवल संजीवनी मिल गयी बल्कि वह बिहार की सब से बड़ी पार्टी बनकर सामने आ गयी ।नीतीश की गलती से ही कांग्रेस भी बिहार में पुनर्जीवित हो गयी ।
अब नीतीश एनडीए में शामिल हो चुके हैं ।मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार में उनके जैसा कोई चेहरा और व्यक्तित्व नहीं है ।अगर उन्हें मंझी हुई और सटीक राजनीति करनी है,तो वे सिर्फ मुख्यमंत्री बने रहें ।पीएम बनना उनके राजनीतिक सामर्थ्य से बाहर की चीज है ।चाणक्य नीति की जगह नीतीश नीति बनाने वाले नीतीश कुमार को बस बिहार का विकास और बिहार की जनता की चिंता करनी होगी ।नीतीश अब किसी मोहजाल में ना फंसे और पारदर्शी राजनीति से बिहार का कायाकल्प करें ।बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाते हुए,राज्य में मिल्लत का माहौल सिद्दत से कायम रहे,नीतीश की यह प्राथमिकता होनी चाहिए ।रही बात लालू प्रसाद और कांग्रेस की,तो,दोनों के बुरे दिन अब शुरू हो चुके हैं ।सब से ज्यादा नुकसान लालू प्रसाद यादव को होगा ।दो बेटे एक साथ बेरोजगार हो गए हैं और सीबीआई और आईबी उनके पीछे पड़ी है ।अभी बिहार की राजनीति का पारा कुछ दिनों तक सातवें आसमान पर रहेगा ।आखिर में तटस्थ होकर और ताल ठोंककर हम यह कह रहे हैं कि नीतीश का यह फैसला नीतीश के राजनीतिक जीवन और बिहार की जनता के लिए सापेक्ष और हितकर है ।