विद्यापति के बाद कालजयी रचनाकार “मैथिली पुत्र” प्रदीप का निधन
विद्यापति के बाद कालजयी रचनाकार “मैथिली पुत्र” प्रदीप का निधन
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह
पटना (बिहार) : आज बिहार सहित देश ने मैथिली भाषा के कोहिनूर और अनमोल रत्न को खो दिया । मैथिली साहित्य के महान विभूति और पुरोधा प्रभु नारायण झा “प्रदीप” अब इस दुनिया में नहीं रहे ।
30 मई की सुबह में दिन भोर लहेरियासराय स्थित वर्तमान आवास स्वंप्रभा निकुंज में युग पुरुष प्रदीप ने अंतिम सांस ली
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मैथिली साहित्य के इस मजबूत स्तम्भ की मृत्यु पर गहरी संवेदना व्यक्त की है और कहा है कि कवि प्रदीप जैसे, यशस्वी पुरोधा, धरती पर बहुत कम आते हैं । बिहार सहित देश ने आज एक बड़ी शख्सियत को खोया है, जिसकी भरपाई मिल का पत्थर है । “जगदंब अहीं अवलंब हमर…”, “मिथिला के धिया सिया जगत जननी भेली…”, “तू नहि बिसरिहें गे माय…”,”‘बाबा बैद्यकनाथ कहाबी…'” और “चलू चलू बहिना हकार पूरै ले…”, सरीखे अनगिनत कालजयी रचनाओं की रचना करने वाले मैथिली साहित्य जगत में “मैथिलीपुत्र प्रदीप” के नाम से प्रसिद्ध और विख्यात शिक्षक- कवि प्रभु नारायण झा के निधन पर पूरा मिथिलांचल सहित बिहार मर्माहत है । विद्यापति सेवा संस्थान ने दिवंगत के प्रति गहरा शोक जताया है ।
शनिवार की सुबह उनके निधन की खबर आने के बाद विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू एवं सचिव प्रो जीव कांत मिश्र ने उनके आवास पर पहुंचकर संस्थान की ओर से दिवंगत आत्मा को श्रद्धा-सुमन अर्पित किया । अपने शोक संदेश में संस्थान के अध्यक्ष एवं वयोवृद्ध साहित्यकार पंडित चंद्रनाथ मिश्र “अमर” ने कहा कि ऋषि परंपरा के वे एक अद्भुत कवि थे, जिन्होंने अपनी लेखनी की रोशनी से मैथिली साहित्य जगत को जीवन पर्यंत प्रकाशवान बनाए रखा । डॉ. बैद्यनाथ चौधरी “बैजू” ने कहा कि उनके निधन से मिथिला- मैथिली के विकास के लिए सतत चिंतनशील रहने वाला हितचिंतक आज भले हमसे जुदा हो गया लेकिन अपनी लेखनी से मिथिला-मैथिली के मान-सम्मान के नित नये प्रतिमान गढ़ने वाले मैथिली पुत्र प्रदीप अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा जीवंत बने रहेंगे । मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं. कमलाकांत झा ने कहा कि वे आधुनिक मैथिली भाषा-साहित्य के संस्थापकों में से एक थे । जिन्होंने अपने विशाल व्यक्तित्व की बदौलत ना सिर्फ स्वयं को विद्वत परंपरा के वर्तमान युग की सशक्त कड़ी के रूप में स्थापित किया बल्कि स्वयं के सानिध्य में साहित्य और साहित्यकार को आजीवन पल्लवित पुष्पित करने में लगे रहे । वरिष्ठ कवि मणिकांत झा ने उनके साहित्यिक एवं समाजिक सेवा को स्मरण करते हुए कहा कि वे एक ऐसे रस-सिद्ध कवि थे, जिन्होंने “सादा जीवन-उच्च विचार” की जीवन पद्धति का अनुपालन करते हुए पत्रकारिता, साहित्य एवं समाज सेवा की छांव तले जीवन पर्यंत मैथिली साहित्याकाश को अनवरत ऊंचाई प्रदान की । प्रो. जीव कांत मिश्र ने कहा कि उनके निधन से मैथिली साहित्य जगत का अमूल्य हस्ताक्षर आज हमसे बिछड़ गया । संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बुचरू पासवान ने कहा कि मैथिलीपुत्र प्रदीप के रूप में अपनी लेखनी से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्रांति का बिगुल फूंकने वाला रचनाकार, आज हमसे जुदा हो गया । मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने अपने शोक संदेश में उनके निधन को एक युग के अवसान सरीखा बताते कहा कि उनके निधन से मिथिला-मैथिली के विकास के प्रति सदैव चिंतनशील रहने वाला एक समर्पित अभियानी हमसे, सदा के लिए जुदा हो गया । मैथिलीपुत्र प्रदीप के प्रति शोक-संवेदना व्यक्त करने वाले अन्य लोगों में प्रो. उदय शंकर मिश्र, कवि चंद्रेश, फूलचंद्र प्रवीण, हरिश्चंद्र हरित, डॉ. महेंद्र नारायण राम, गायक दीपक कुमार झा, कुंजबिहारी मिश्र, रामबाबू झा, केदारनाथ कुमर, माधव राय, महात्मा गाँधी शिक्षक संस्थान के चेयरमैन हीरा कुमार झा, डॉ. गणेश कांत झा, डॉ. उदय कांत मिश्र, विनोद कुमार झा, प्रो. विजय कांत झा, प्रो. चन्द्र मोहन झा पड़वा, प्रो चन्द्र शेखर झा बूढा भाई, आशीष चौधरी एवं चंदन सिंह आदि शामिल थे ।