आधी आबादी के साथ होते रहे हैं छल
आधी आबादी के साथ होते रहे हैं छल
हिन्दुस्तान में होती है नारी पूजा
क्वांरी कन्याओं के किसी धार्मिक अनुष्ठान में भोजन करने से होती है बरकत
आखिर हिन्दुस्तानी नारियों के शौर्य में क्यों और कैसे आई है कमी ?
जिम्मेवार कौन ?
मुकेश कुमार सिंह का खास विश्लेषण—-
नारी सृष्टिकाल से बेहद महत्वपूर्ण और पीढ़ी दायिनी रही है ।आदिकाल से ही हिन्दुस्तानी नारी का एक विशिष्ट सम्मान,शौर्य,महत्ता और नैसर्गिक पहचान रही है ।नारी सृष्टि की मूल और जननी है ।नौ माह तक शिशु को अपने गर्भ में रखकर वह असाध्य वेदना झेलकर आदमजात को पीढ़ी देती है ।नौ महीने का यह कालखण्ड नारी के अलौकिक और लौकिक महानता का आईना होता है ।हांलांकि पुरातन नारी,मध्यकालीन नारी और आधुनिक नारी में बेहद बदलाव हुए हैं ।पहले नारी का शौर्य लम्बी घूंघट और परदे के पीछे छुपा और कराह रहा था ।लेकिन सभ्यता के विकास के साथ आधुनिक नारी घर से बाहर निकलीं और अपने अदम्य बौद्धिक क्षमता से देश और दुनिया का साक्षात्कार कराया ।आज की आधुनिक नारी किवदंती की तरह विभिन्य क्षेत्रों में अपने नाम का परचम लहरा रही हैं ।सरोजनी नायडू,इंदिरा गांधी,प्रतिभा सिंह पाटिल,सुनीता विलियम्स,किरण बेदी,महादेवी वर्मा,सुमित्रा। कुमारी चौहान,मृदुला गर्ग,अमृता प्रीतम,कल्पना चावला,पी,भी संधु सहित बड़े नामों की अब झड़ी लगी है जिसमें नारी के लहराते हुए कद दृष्टिगत हैं ।लेकिन हाल के कुछ वर्षों में नारियों के शौर्य की गाथा कम और उनके नैतिक ह्रास के किस्से ज्यादा सुनने को मिल रहे हैं ।हमने इस विषय पर गंभीर शोध किया है ।हमने पाया है की कुछ दुष्टा नारी को छोड़ दें,तो,अधिकतर नारियों के हृदय बेहद कोमल होते हैं ।हमारा समाज लाख जतन और महती कोशिशों के बाद भी पुरुष प्रधान समाज की मान्यताओं से संचालित और पुष्पित–पल्लवित है ।आज अदम्य साहस के साथ नारी घर से बाहर निकलकर शिक्षा ले रही हैं या किसी नौकरी,अथवा किसी रोजगार में अपने स्थापित अस्तित्व का अहसास करा रही है ।जाहिर तौर पर किसी भी जगह नारियां,पुरुषों से घिरी रहती हैं । पुरुष मानसिकता की बात करें,तो,नारी देह को हर स्थिति में पाने को वे आतुर होते हैं ।ऐसे में विविध तरह के प्रलोभन,झांसे और पाखण्ड प्रेम के प्रयोजन से नारी की निकटता पुरुष पा लेते हैं । मोहपाश में जकड़ी नारी बाह्य जगत के ऐश्वर्य और भौतिक सुविधा के लालच में अलौकिक महान प्रेम की हत्या कर पुरुष के वश में आकर वह कर गुजरती है,जिसकी ईजाजत समाज कतई नहीं देता ।स्वार्थ और लालच के बीच पनपे रिश्ते के बीच कतई पवित्र प्रेम नहीं होता है ।नारी और पुरुष एक दूसरे की जरूरत हैं ।शरीर और काम–क्रीड़ा की भी अपनी खास महत्ता है ।लेकिन वर्जनाओं को तोड़कर सच्छन्दता का प्रवाह कतई ग्राह्य संस्कार नहीं है ।
ये माना की पुरुष अपनी मानसिक अभिव्यक्ति से नारी को हासिल करने की हर कोशिश करता है लेकिन नारी का उसमें बह जाना और समा जाना,उनकी नैतिक समृद्धि के खोखले होने का ज़िंदा इश्तहार है ।अगर नारी दृढ़ निश्चयी और अपने शौर्य के प्रति ईमानदार हो,तो,कोई पुरुष उस तक फटक भी नहीं सकता है ।लेकिन झंझावत,ऊहापोह और भौतिक चाह में नारी अपनी गरिमा और मौलिक उपस्थिति का खुद से सर कलम कर रही हैं ।ऐसा नहीं है की पाप पहले नहीं होते थे ।पहले के पाप को जानने और समझने के लिए संचार माध्यम नहीं थे ।अब कोई छोटा से छोटा पाप ना केवल झटके में दिख जाता है बल्कि जोर–शोर से उसकी चर्चा भी बाहेआम होती है ।
नारी के मौजूदा हालात के लिए पुरुष तो जिम्मेवार हैं ही लेकिन सब से अधिक जिम्मेवार खुद नारियां और उनकी वक्ती और माली स्वीकृति है ।नारी जननी है,इसका सदैव भान और अहसास रहना चाहिए ।भारतीय नारी पूज्या,अराध्या और देवी के रूप में स्वीकार्य है ।पढ़ाई का असली माने है दिल और दिमाग का पारदर्शी समन्वय ।पुरुष और नारी आज दोनों भौतिकवादी संस्कार से लैस होकर मिथ्या ज्ञान अर्जन कर आसमानी वजूद के झंडादार हैं ।खास कर नारी को चैतन्य होकर अपनी उपस्थिति के साथ कृत्यों को स्पन्दन देना जरुरी है ।उनके गर्भ निस्सरण से सृष्टि चल रही है ।वह जननी है ।पाश्चात्य संस्कार से वशीभूत होकर नारी आज के समय वस्त्र पहनने तक से परहेज करने लगी हैं ।पुरुष मानसिकता पर यह सःस्थिति बेहद विपरीत मनोदशा की छाप छोड़ती है ।हमें यह कहने में कतई गुरेज नहीं है की आज नारी खुद को भोग्या और वस्तु के रूप में परोसती दिख रही है ।प्रकृति का नियम है की विपरीत लिंग के बीच आकर्षण और घनिष्ठता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ।लेकिन वहाँ एक सीमा और लक्ष्मण रेखा की बेहद जरूरत है ।कुछ घृणित घटनाओं, मसलन बलात्कार जैसी घटनाओं को छोड़ दें,तो,किसी भी पुरुष को इतनी हिम्मत नहीं है की वह किसी नारी को छु भी ले ।किसी भी नारी को देखकर ही पुरुष अपने भीतर के काम ज्वाला को शांत करने के लिए विवश होता है ।लेकिन सारी दीवारें तब धराशायी हो जाती हैं,जब पुरुष को नारी की मौन या खुली स्वीकृति मिल जाती है । भारतीय संस्कृति के अंदर नारी की अनमोल पहचान है ।आज के दौर में नारी को बेहद गंभीरता और सिद्दत से आत्म चिंतन और आत्म मंथन करने की जरुरत है ।