विश्व धरोहर उग्रतारा स्थान के मुख्य द्वार को लेकर लगा गंभीर आरोप
सहरसा टाईम्स —-(रमण ठाकुर की वाल से) उग्रतारा न्यास समिति के अध्यक्ष सहरसा जिले के डीएम होते हैं। ऐसे में महिषी स्थित उग्रतारा स्थान में होने वाले किसी भी विकास कार्य की सूचना अध्यक्ष को दी जानी चाहिये। खासकर उस कार्य मे विशेषकर जहां से लोगों की आस्था जुड़ा हुआ हो। तो क्या सौ वर्ष से अधिक पुराने तारास्थान के प्रवेश द्वार ( सिंह द्वार ) को तोड़कर बनाये जा रहे साधारण प्रवेश द्वार की सूचना न्यास समिति के अध्यक्ष को दी गयी थी? अगर नही दी गयी थी तो संवेदक के साथ साथ समिति के वो लोग भी गुनहगार हैं जो ग्रामीण हैं।
पुराने और भव्य प्रवेश द्वार को जिस वक्त तोड़ा गया था , उसी समय सहरसा डीएम का पदभार शैलजा शर्मा ने संभाली । नये डीएम पदभार संभालने के बाद सबसे पहले उग्रतारा स्थान पूजा अर्चना करने गयीं थी। मगर उस वक्त भी उन्हें इस बात की जानकारी शायद नही दी गयी थी। अब सारा दारोमदार न्यास समिति के अध्यक्ष सह डीएम पर है कि वो अपने प्रयास से पुनः विश्व धरोहर में शामिल महिषी स्थित सिद्धपीठ उग्रतारा स्थान को वही प्रवेश द्वार दिलवायें जिससे लोगों की आस्था व भावना और पहचान जुड़ी हुई थी।
जाहिरतौर से किसी भी बड़े तीर्थस्थल की पहचान उसकी धार्मिक महत्ता और प्रवेश द्वार से होती है। इसलिये पुराने हो चुके मंदिर और प्रवेश द्वार का पुनर्निर्माण पूर्व के आकार में ही वृहत और भव्यता के साथ की जाती है। इसका उदाहरण है सिंहेश्वर स्थान, बैद्यनाथधाम, बाबा विश्वनाथ काशी आदि। मगर अचरज की बात यह है सिद्धपीठ उग्रतारा स्थान महिषी के सौ वर्ष से अधिक पुराने प्रवेश द्वार को तोड़ दिया गया। सरकारी कोष से बनने वाले इस प्रवेश द्वार में चहारदीवारी भी शामिल है। जितनी राशि आवंटित है उसमें पुराने टाइप के प्रवेश द्वार बनना कतई संभव नही है। जो नया प्रवेश द्वार का निर्माण हो रहा है उससे कई गुना भव्य , आकर्षक और मजबूत गोरहो घाट स्थित गेटवे ऑफ कोसी द्वार है जो पूर्व सांसद दिनेश चंद्र यादव के सांसद मद से बनाया गया था। आखिर कहां था उग्रतारा न्यास परिषद जो इस पर ध्यान नही दिया और उग्रतारा स्थान की पहचान रहे पुराने प्रवेश द्वार को तोड़कर मामूली नया गेट बनाया जाने लगा। हालांकि नये गेट के निर्माण को फिलहाल युवकों ने रोक दिया है। अगर इसका सही समाधान नही निकला तो मामला तूल भी पकड़ सकता है।